कुछ लिखता हूँ's image
Poetry1 min read

कुछ लिखता हूँ

Ashish PandeyAshish Pandey September 18, 2021
Share0 Bookmarks 217304 Reads0 Likes

वर्षो से मन में इच्छा थी, कुछ लिखता हूँ कुछ लिखता हूँ ,

बिखरी आकांक्षाओं को एक रूप में बन्धित करता हूँ ।

पर द्वन्द असीमित था मन में, क्या लिखूं कहा आरम्भ करुँ,

क्या समझाकर क्या दिखलाकर, चंचल मन को स्तम्भ करूँ |

क्या लिखूँ विश्व में व्याप्त क्लेश, या ममता का कोई रूप लिखू,

पीपल की छाया को देखू, क्या चिल-चिल करती धूप लिखूं |

क्या मदिरा की महिमा लिख दूँ, जिसने जीवन आसान

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts