हाँ मैं विधवा हूँ's image
Ink ItPoetry4 min read

हाँ मैं विधवा हूँ

Shanky❤SaltyShanky❤Salty March 4, 2023
Share0 Bookmarks 30 Reads0 Likes

दर्द लिखूँ या लिखूँ मैं अपनी हालात

बेचैनी लिखूँ या लिखूँ मैं वो कसक

आँखों के काले आँसूं बहे थे

जब तुम मुझे छोड़ गए थे

हाँ तुम्हारे नाम का काजल लगाया था

वो बह गए थे तुम्हारे जाने की खबर से काँच की चुड़ियाँ जो पहनी थी

वो तोड़ दी गई थी

हकीकत में मुझे काँच की

तरह तोड़ दिया गया था

तेरे जाते ही

जलते दीये को राम जी ने बुझा दिया था

मेरा सुहाग उजाड़ दिया था

विधवा नाम मुझको दिया गया माँग से सिंदूर पोछ दिया गया

जो तेरे नाम के नाम मैं

लगाया करती थी

मैं रोती नहीं क्योंकि

आँसू तो सूख गए मेरे

तुम मुझसे रूठे थे

या किस्मत मेरी फूटी थी

पता नहीं

पता तो बस इतना है

जीवन मेरा बस अब अकेला है

जीवन साथी ने

साथ सदा के लिए छोड़ा है दो चिड़ियाँ दिखाई थी तुमनें

और कहा था यह हम दोनों हैं

पर देखो ना वो दोनो तो आज भी साथ है

पर तुम क्यों नहीं हो मेरे साथ

कहाँ उड़ गए तुम?

मेरी नींद तुम उड़ा ले गए

जब से तुम सदा के लिए सोए आज भी मुझे याद है

जब से सुहागन हुई थी मैं

कहते थे लोग

निखर गई हूँ मैं

पर तुम्हारे जाते ही

बिखर गई हूँ मैं छन-छन पायल की आवाज से

घर गूंजा करते थे

अब मेरी चीखों की आवाज से

मेरा मन गूंजा करता है

तुम्हारी जान थी ना मैं

आज बेजान हो गई हूँ मैं तुम्हारा होना

और तुम्हारा होने में होना

बस दिल को तसल्ली देने वाला है विधवा हूँ मैं

तिरस्कार की घूंट पीती हूँ मैं

श्रंगार के नाम पर सिहर जाती हूँ मैं

सहारा नहीं मिलता बस सलाह ही मिलती है

अछुत सा व्यवहार होता है

शुभ कर्मों से हटाया जाता है

विधवा कह कर बुलाया जाता है कोई झांकने तक नहीं आता है

ना दवा देता है ना देता है जहर

बस ताने ही मिलें हैं

बस तड़पता छोड़ जाता है

तेरे जाते ही घर का चुल्हा बुझ गया था

पर ह्रदय में आग लग गई थी

कहते हैं लोग

मैं तुम्हें खा गई हूँ रात लम्बी होती है

पर हकीकत तो यह है

मेरी ज़िन्दगी अब विरान हो गई है

मरूस्थल-सी हो गई है

बस काँटें ही रह गए है

फूल तोड़ ले गया कोई

जात मेरी विधवा हो गई बैठ चौखट पर तुम्हारा

इंतजार करूँ मैं प्रियतम

आओगे ना तुम अब कभी

पर आए है मेरे आसूं तुम्हारी याद में

ले गए खुशियां तुम मेरी

ले जाते तुम भी मुझको

सती सी जलती मैं भी

चिता के साथ तुम्हारी

ज़िंदगी में नज़रें लग गए मेरी

हँसती खेलती ज़िन्दगी लुट गई मेरी सूरज की लाली देख मुस्कुराती थी मैं

आँखें अब भी लाल ही रहती हैं

मेरी पर मुस्कुराती नहीं हूँ मैं

वो तो बस कहने की बात थी

सात जन्मों के लिए मैं तुम्हारी थी

हकीकत में तो मैं असहाय थी

मेघ भी बरसे

सूरज भी चमके

पर तुम्हारी तुलसी सूखी ही रह गई तुम्हारे बाग की फूल थी मैं

जो बिखरी पड़ी है

समाज के कुछ कुत्ते नज़र डालते है

तन का सुख देने की बात करते हैं

मेरे मन को कचोटतें हैं

लोग कहते थे

दुख बाँटने से कम होता है

पर मेरा दुख तो एक बहाना है

दरसल उन्हें मेरे साथ बिस्तर पर सोना है

ह्रदय बहुत रोता है मेरा

हाथों में तुम्हारे नाम की मेहेंदी लगाई थी मैंने

मेहेंदी की लाली चली गई

और तुम भी हाथों की लकीरों से चले गए इश्क़ मुकम्मल ना हो तो लोग रोते हैं

मरने की बात करते हैं

ज़रा मुझको भी बतलाओ ना

मैं करूँ तो क्या करूँ

ह्रदय तो है पर धड़कन नहीं है

जिस्म तो है पर जान नहीं है

दर्द तो इतना हैं की शब्द नहीं है बयां करने को

भला कोई क्या समझे मेरे दर्द को

मेरी पंक्तियों को वाह वाह कर चले जाएगें

मार्मिक लिख देगें

पर पढ़ न पाएगा दर्द मेरा कोई हे कालों के महाकाल

बगीया मेरी उजड़ गई

आज कंठ मेरा फिर से भर गया

समाज की नजरों में

राधा को कृष्ण न मिले

फिर भी कृष्ण राधा के ही कहलाए

दुख मेरा भी पच जाए

यह ज्ञान आप मुझको जल्दी दिलाए

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts