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किन्नर....!
ईश्वर का प्रसाद हूँ मैं
पर लोगों के लिए एक अभिशाप हूँ मैं
माँ बाप का अंश हूँ मैं
पर तिरिस्कार का वंश हूँ मैं
ना महिला ना पुरुष
हाँ किन्नर हूँ मैं
जब जब खुशियां आती हैं
तब तब तालियाँ बजाई जाती हैं
पर मेरे तालियों से लोगों के मुँह बन जाता है
ना जानें क्यों पराया सा व्यवहार होता है,
हूँ तो आखिर इंसान ही ना मैं
लड़कियों सा मन है मेरा
लड़कों सा तन है मेरा
बसते हैं ह्रदय में राम हैं मेरे
फिर भी हर पल हर क्षण तिरस्कार की घूंट ही पीती मैं
तिल तिल कर जीती हूँ मैं
चंद रुपयों के बदले हम आशीर्वाद हैं देतें,
दरसल बात रुपये की नहीं है
बात तो पापी पेट की है
गर मिला होता सम्मान समाज में
या मिला होता सामन अधिकार समाज में
तो शायद आज चंद रुपयों के खातिर अपमान का घूंट ना पीती मैं,
छक्के, बीच वाले, हिजड़े के नाम से ना जानी जाती मैं
ग़र घर में खुशियाँ आती हैं
बिन बुलाए हम चले आते हैं
ना जात देखते हैं ना देखते हैं धर्म
बस तालियां बजा कर अपने मौला से उनकी खुशियों किटी दुआएँ करते हैं
यक़ीनन बद्दुआएं मिलती है मुझको ,पर देती हर पल दुआएँ ही हूँ मैं
आशीष हर किसी को चाहिए हमारी
पर कोई माँ हमें कोख से जन्म देना नहीं चाहती है
कहते है लोग, हूँ मैं विकलांग शरीर से
पर शायद मुझसे घृणा कर अपनी सोच तुम विकलांग कर रहे हो
खैर छोड़ो,,,
ना नर हूँ ना नारी
हूँ मैं संसार में शायद सबसे प्यारी
हाँ मैं किन्नर हूँ.....!!!!!
मालिक
मोहे अगले जन्म ना औरत करना ना मर्द करना
करना मोहे हिजड़ा ही,
मन में ना तो छल है ना है कपट
है तो बस प्रेम तोहे से पिया
ईश्वर का प्रसाद हूँ मैं
पर लोगों के लिए एक अभिशाप हूँ मैं
माँ बाप का अंश हूँ मैं
पर तिरिस्कार का वंश हूँ मैं
ना महिला ना पुरुष
हाँ किन्नर हूँ मैं
जब जब खुशियां आती हैं
तब तब तालियाँ बजाई जाती हैं
पर मेरे तालियों से लोगों के मुँह बन जाता है
ना जानें क्यों पराया सा व्यवहार होता है,
हूँ तो आखिर इंसान ही ना मैं
लड़कियों सा मन है मेरा
लड़कों सा तन है मेरा
बसते हैं ह्रदय में राम हैं मेरे
फिर भी हर पल हर क्षण तिरस्कार की घूंट ही पीती मैं
तिल तिल कर जीती हूँ मैं
चंद रुपयों के बदले हम आशीर्वाद हैं देतें,
दरसल बात रुपये की नहीं है
बात तो पापी पेट की है
गर मिला होता सम्मान समाज में
या मिला होता सामन अधिकार समाज में
तो शायद आज चंद रुपयों के खातिर अपमान का घूंट ना पीती मैं,
छक्के, बीच वाले, हिजड़े के नाम से ना जानी जाती मैं
ग़र घर में खुशियाँ आती हैं
बिन बुलाए हम चले आते हैं
ना जात देखते हैं ना देखते हैं धर्म
बस तालियां बजा कर अपने मौला से उनकी खुशियों किटी दुआएँ करते हैं
यक़ीनन बद्दुआएं मिलती है मुझको ,पर देती हर पल दुआएँ ही हूँ मैं
आशीष हर किसी को चाहिए हमारी
पर कोई माँ हमें कोख से जन्म देना नहीं चाहती है
कहते है लोग, हूँ मैं विकलांग शरीर से
पर शायद मुझसे घृणा कर अपनी सोच तुम विकलांग कर रहे हो
खैर छोड़ो,,,
ना नर हूँ ना नारी
हूँ मैं संसार में शायद सबसे प्यारी
हाँ मैं किन्नर हूँ.....!!!!!
मालिक
मोहे अगले जन्म ना औरत करना ना मर्द करना
करना मोहे हिजड़ा ही,
मन में ना तो छल है ना है कपट
है तो बस प्रेम तोहे से पिया
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