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गाँव-गाँव औ शहर-शहर,
बचपन से लेकर जीवन-भर।
माँ-पिता के जैसे हितकारी,
सरल,अहेतुक, जन-सुखकर।।
भीतर में जो सदबीज छुपे,
उनको वट-वृक्ष बनाते हैं।।
शिक्षक हैं हम, इस जग में,
शिक्षा के दीप जलाते हैं।।
जब कोई नन्हें पैरों से,
दहलीज लाँघकर आता है।
कोई घरवाला उंगली पकड़,
विद्यालय छोड़ के जाता है।।
उस रोते-बिलखते बचपन को ,
बहलाते,खिलाते,सिखाते हैं।
शिक्षक हैं हम इस जग में,
शिक्षा के दीप जलाते हैं।।
'अ' से अनगढ़ बचपन को,
'ज्ञ' से ज्ञानी हम करते हैं।
जीवन के भावी रास्तों पर,
चलने का हुनर हम भरते हैं।।
जोड़,घटाना,गुणा,भाग ,
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