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कोशिशें हैं तुम्हें बताने की
खोके सब कुछ भी मुस्कुराने की
जब भी कोई उदास बैठा हो
ढूंढ लो इक वजह हंसाने की
दूसरे की खुशी की खातिर ही
कर लो कोशिश भी हार जाने की
रूठ कर हो कहीं कोई बैठा
चंद बातें हो फिर मनाने की
लौट के आ ही जाए वो शायद
बात हो बिगड़ी को बनाने की
जो हुआ सो हुआ अजी छोड़ो
बात छेड़ो ना अब फ़साने की
देख लो तुम उम्मीद से आगे
धूम है फिर बहार आने की
अरविन्द यादव
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