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बन ज्वाला तब जनवरी आती है,
फरवरी भी इतराती है,
मार्च में सब तय होता है,
अप्रैल में जो भी होता है।
मई ही फिर सिखलाती है,
जुनूं-ए-जून में दिल बहलाती है,
जुलाई ही भाती है मन को,
अगस्त परिणाम बन आता है,
सिंतबर सब डर झुठलाता है,
अक्टूबर बन कर एक वरदान,
नवम्बर ओढ़ तीर कमान,
दिसंबर बदन काँपाता है।
-अरशा त्रिपाठी (त्रिशा)
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