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प्रेम पर अब क्यों लिखें
बंद करो प्रेम पर लिखना
परन्तु क्यों, क्यों न लिखूं मेैं
ठीक ही तो है, एक उम्र होती है प्रेम की
अब तीस बरस के बाद क्यों लिखूं प्रेम
अब क्या प्रेम !
तो क्या लिखूं उन सत्यों पर
जो पेैरों तले रौंद दिए जाते हैं,
या अपने ही जान पहचान के लोगों के दोहरे व्यक्तित्व पर ?
या अपने नाम के आगे श्रीमती लिखे जाने पर होने वाली बहस के विषय में
या फिर लिखूं उन औरतौं पर जो दो या तीन बेटियों की मां होने की व्यथा को सहती हैं।
किस पर लिखूं उन नन्हीं कलियों पर जो खिलने से पहले ही तोड़ ली जाती हैं,
या फिर कानून के नीचे होती दहेज संबंधी हत्याओं पर
माता पिता के दहेज न दे पाने की स्थिति में
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