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कुछ…पलकों में रमीं
बरसने को खडीं
कुछ…दिलों में बसीं
ख़ुशबू से भरीं
कुछ…ज़ेहन में घुटीं
तड़कने को जुटीं
कुछ …ढूँढे न मिलीं
ख़ुद को ढूँढीं फिरीं
बातें करनी है
यादों से
तो इन्हें सख़्त
मक़ाम दे दो ।
अन्विता
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