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मैं खुद के बहाव में रही
न जीत में ,न हार में रही
ख़ुद में ही जिया खुद को
हर पल अपने विश्वास में रही
न जग में रही ,न वैराग्य में रही
अपनी धुन अपनी चाह में रही
लोग बुझ गए जिसमे जल कर
मैं हर क्षण उसी ताप में रही
न मंजिल में रही,न राह में रही
मैं अपनी ही हर शाम में रही
न महफ़िल में रही,न तन्हाई में रही
मैं अपनी गीत,अपनी ही ग़ज़ल में रही
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