
Share0 Bookmarks 109 Reads0 Likes
वो जिसे तूने आंसू समझ नजरंदाज किया
वो तेरे दिए जख्मों से टपकता लहू था
वो चीख जिसने तेरी रूह को परेशान किया
वो मेरी गलती नहीं तुमने ही जख्मों पर पैर रखा
वो चराग जो तूने दिन के उजाले में फेंक दिया
वो कैसे अब तुझे रात के अंधेरे में मिलेगा
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments