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वो ग़मगीन स्र्ख़ के
साथ कही, अंकित!
करते हो इश्क़ मुझसे?
मैं निःशब्द था!
शब्दहीन।
हृदय की गति बढ़ गए,
मेरे अल्फाज़ बिखर गए!!
कैसे समेट सकू अल्फाजों को?
कैसे करू मैं व्यक्त?
अक्लहीन।
राह देखती रही वो,
मैं उन जवाब के राह में,
अनभिज्ञ विस्मृत हो गया।
काश!
निहारती वो कशिश
मेरी आंखों की,
शायद मेरी वे-पनाह
इश्क़ को बूझ पाती।
न उनकी नज़रे उठी
नाहि मैं व्यक
साथ कही, अंकित!
करते हो इश्क़ मुझसे?
मैं निःशब्द था!
शब्दहीन।
हृदय की गति बढ़ गए,
मेरे अल्फाज़ बिखर गए!!
कैसे समेट सकू अल्फाजों को?
कैसे करू मैं व्यक्त?
अक्लहीन।
राह देखती रही वो,
मैं उन जवाब के राह में,
अनभिज्ञ विस्मृत हो गया।
काश!
निहारती वो कशिश
मेरी आंखों की,
शायद मेरी वे-पनाह
इश्क़ को बूझ पाती।
न उनकी नज़रे उठी
नाहि मैं व्यक
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