ज़िंदगी एक तिलिस्म ही तो है
जो जल रहा वो जिस्म ही तो है
दिखाना सबको है जिंदा होकर
जिंदा रहना एक रस्म ही तो है
खाता है वो हर वक़्त झूठी क़सम मेरी
तोड़कर कहता है क़सम ही तो है
है कोई शर्म नही बचा अब उसमें
No posts
Comments