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नफ़रत उसके अंदर का निकलता ही नही
अब वो पत्थर हो गया है पिघलता ही नही
हैं उसके कुछ चाहने वाले भी उसको मगर
मैंने सुना है कि अब वो किसी से मिलता ही नही
देखकर आसमाँ को ये सोचता है बच्चा
आखिर आसमाँ जमीं पर उतरता क्यो नही
ये तजुर्बा भी अब हमारे किस काम का है
जाहिल अब खुद को कोई समझता ही नही
कहने को पचास शिकायतें हैं मेरे पास
मगर दिलचस्पी अब किसी में मैं रखता
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