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माँ
यतीमी खूँ रुलाती है बदन बेजान लगता है ।
ना हो जिस घर में माँ वह घर मुझे वीरान लगता है ।
मैं सच कहता हूँ माँ के पाक आंचल की क़सम खाकर ।
मुझे तो माँ का चेहरा इश्क का कुरआन लगाता है ।
मुझे लगती है जब ठोकर तड़प जाती है मेरी माँ ।
जवानी में भी मादर को पिसर नादान लगाता है ।
मेरी माँ भूकी प्यासी बैठी रहती है मेरी खातिर ।
मैं जब घर लौट आता हूं तो दस्तरख्वान लगता है ।
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