
उड़ीक कविता राजस्थानी - Rajasthani language, literature, poetry & heritage | Anjas

उड़ीक कविता राजस्थानी
भीजे भोळी याद एकली, साँझड़ली भी आज उदास।
जद मिलसी बिछड़्योड़ी जोड़ी, हिरखैली तद, उजळी आस।
तारां री छैयां में लुकछिप, आ रे म्हारा मन रा मीत।
दूर गिगन सूं हेत लगावै, धरती री या कोनी रीत॥
ओ रे चाँद गिगन रा वासी, छिटकावै मत यूँ मुस्कान।
कुण सूं थारा नैण मिल्या रे, कुण में बसग्या थारा प्राण॥
अळगौजै री टेर सुणीजे, मन में मुळकै मीठी तान।
थक के सो मत आस बावळी थकन मिटावै मन रो मान॥
काजळ सारै आँखड़ली पण, आँसूड़ा में सिसकै प्राण।
हिंगलू उजळा भाग सँवारे, पी बिन सूना सै सिणगार॥
मैंदी मन से रंग दिखावै, हथळेवो रच दे संसार।
पण जोड़ी रे कंथ मिल्या बिन, जुड़ै न मन रा मीठा तार॥
बिछिया बाजै धीमै-धीमै, आस पगलिया करती देख।
सेजां में फुफकारै विषधर, जोबन सूं धन डरती देख॥
तिरसा होठ गुलाबी पड़ग्या, लाली बसगी रीता नैण।
थर-थर धूजै काया कँवळी, गळगळ होग्या धुळता बैण॥
भँवरा भिणकै कमलां भीतर, हिवड़ै भीतर बसगी प्रीत।
बिछड़यां नै जद मिलता देख्या, छंदा भीतर मुळक्या गीत॥
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