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वक्त कुछ ठहर सा गया था।
नही...
वक्त कहां ठहरता है।
वो तो कभी रुका हीं नहीं,
न किसी अच्छे के लिए
न किसी बुरे के लिए,
रुके तो हम थे बीते वक्त की कुछ अच्छी बुरी यादें लिए।
गुजरते वक्त में ठहरे हम,
कब बचपन जीते–जीते ,
बचपन की यादें जीने लगे पता भी न चला।
ये भी न पता चला की
कब हम कागज़ की कश्तियों से खेलते–खेलते ,
कागज़ात संभालने लगे।
पता चला तो सिर्फ ये की,
वक्त गुजरता जा रहा है,
और हम गुजरते वक्त की यादों में कहीं ठहरते जा रहें हैं।
अंजली मिश्रा
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