
मैं दशस्वमेध घाट पर बैठा हुआ था। गंगा बिलकुल अपने प्रचंड वेग से घाट पर चढ़ी हुई थी। इसलिए भीड़ थोड़ी कम थी। इस समय पर गंगा आरती भी घाट पर न होकर पास के एक मंदिर में कर ली जाती है। जब अधनंगे लोगों को उछलती-कूदती गंगा में डुबकी मारते देख-देख मैं पूरी तरह ऊब गया तो मैंने वापस लौटने का मानस बनाया। लेकिन उसी समय तेज़ बरसात चालु हो गयी। मैं भागता-भागता एक दुकान के शेड के नीचे जाकर खड़ा हो गया। जब पीछे मुड़कर ध्यान से देखा तो वो एक बुक-स्टोर था! अँधा क्या चाहे दो आँखें! मैं सीधा अंदर घुस गया। इस किताब का नाम पहले भी खूब सुन रखा था और फिर बनारस में थे तो कुछ बनारसी ही पढ़ना चाहता था। भाग्य से यह किताब वहाँ मिल गयी। कुछ पन्ने पढ़ने में ही चित्त प्रसन्न हो गया।
अगर किसी शहर को जानना है तो उस तरह से जानो जैसे काशीनाथ सिंह जी काशी (बनारस) को जानते हैं। जानने का अर्थ मात्र उस शहर के गली-मोहल्ले के नामों को रट लेना नहीं होता अपितु उस शहर को अपने इतने भीतर उतार लेना है कि उस शहर के अलावा दूसरा कोई शहर भाये ही न। किसी शहर को अच्छे से समझने के लिए उसके साथ ब्याह रचाना बहुत ज़रूरी है और काशीनाथ सिंह का तो बनारस के साथ लंगोटिया प्रेम रहा है इसलिए उनके शब्दों के माध्यम से बनारस को देखने का अनुभव अद्वितीय था!
अच्छी किताबें वो होती हैं जो और ज़्यादा पढ़ने को लालायित कर देती हैं। सर्वश्रेष्ठ किताबें वो होती हैं जो लिखने के लिए प्रेरित कर देती हैं। यह ऐसी ही एक किताब है। बेहद अल्हड और मजेदार। अंत, शुरुआत से एक दम विपरीत। लेकिन कितना खूबसूरत और सच्चा अंत। जैसे पहले किसी ने हँसा-हँसाकर पेट-दर्द दिया और जाते-जाते एक जोरदार मुक्का और मार दिया हो!
यह किताब में मुख्यता उन्होंने अस्सी घाट पर रहने वाले चित्र-विचित्र लोगों और उनकी चित्र-विचित्र हरकतों का वर्णन किया है। और क्या खूब वर्णन किया है। इस वर्णन में कोई लाज, शर्म, पर्दा, हया का नामोनिशान तक नहीं है। एक दम ठेठ, शुद्ध व पवित्र उल्लेख। किताब में भरपूर गाली-गलोच का प्रयोग है (जिनको बनारस का आशीर्वाद कहा जाता है)। तत्कालीन अस्सी घाट की सभा कितने सारे कवि-महाकवियो से सुसज्जित थी इसका भी एक अनुमान लगेगा।
काशीनाथ सिंह जी का लेखन कभी गुड़ की तरह मीठा तो कभी हरी-मिर्च से तीखा है। प्रबुद्ध पाठकों को इतना भी आश्वासन दे सकता हूँ कि सम्पूर्ण पठन के दौरान आपके मुख पर एक मीठी मुस्कान अवश्य बानी रहेगी। ये हमारा वादा!
अवश्यमेव पठनीय!
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