
बहुत बड़े हैं ख़्वाब मेरे
पर छोटी सी मजबूरी है
मैं उड़ना चाहता हूँ, पंख फैलाए
पाना चाहता हूँ बिना कुछ गंवाए
ऐसा नहीं है कि मैंने कुछ सोचा नहीं है
पर सच कहूं तो हिम्मत नहीं है
हाँ मैं बुज़दिल हूँ, शायद अपनों की परवाह करता हूँ
सोचता हूँ
कुछ अपने लिए करूँगा तो अपनों का साथ छूट जाएगा
खुद के सपने सजाऊंगा तो अपनों का हाथ छूट जाएगा
पर ऐसा भी नहीं है कि मेरा दिल नहीं करता
पर दिल की सुनूंगा तो ईमान खो दूंगा
हाँ मगर कर तो लूंगा मैं मुक़ाम हासिल
पर अपनों के आँखों का वो सम्मान खो दूंगा
सच कहूं तो दिल मेरा भी करता है उड़ने का
पर उड़ गया तो विश्वाश खो दूंगा
चाहत तो मेरी भी है आसमान छूने की
पर छू लिया तो अपनी ज़मीन खो दूंगा
सो जाता हूँ रोते हुए हर रात ये सोच कर कि
आज जिंदगी का एक दिन और कम हो गया
पर हिम्मत नहीं हुई कि कह सकूँ
माँ मुझे इसमे जरा भी दिल नहीं लगता,
पापा, मैं हीरो बनना चाहता हूँ कोशिश करूँ क्या?
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