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उषा-किरण
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सुबह-सुबह
मेरा जैकेट,
कनटोप व ग्लोब्स
तुम्हारी नन्ही फ्रॉक से
घबरा जाते हैं..
शायद घबराती है
शीतलहर भी तुमसे
जब बाहर निकल कर
नंगे पैर
हिरणी सी
कुलांचे भर्ती हो.
और फिर
बर्फीले पानी से
मुंह धोकर
मुस्कुराती हो..
शायद तुम ही
प्रातः काल की
उषा-किरण हो..
रचियेता:- आनंद गोलछा
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