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जिन ज़ख्मों पर रोज़ दवाई लगती है

amit301amitamit301amit June 16, 2020
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जिन ज़ख्मों पर रोज़ दवाई लगती है

एक अरसे से दबी-दबाई लगती है

कँधों पे जो देश उठाए उनकी गर्दन

कुछ मकसद से झुकी-झुकाई लगती है

कदमों से वो रौंद रहे सड़कों का सीना

अंदर तक कोई शूल चुभाई लगती है

अर्जी उनकी कौन लगाए दरबारों तक

जिनकी पीड़ा सुनी-सुनाई लगती है।।

   

      © अमित अफ़रोज़ गुलशन








   

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