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किसी सफर में खोया हुआ सामान जैसे
मैं ग़म के चेहरे पर एक मुस्कान जैसे।
अपनों से जब भी लड़ा हूँ, जीता हूँ
मैं जीत के बोझ की थकान जैसे।
बचपन में सारे दोस्त जहाँ खेलते थे
मैं
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किसी सफर में खोया हुआ सामान जैसे
मैं ग़म के चेहरे पर एक मुस्कान जैसे।
अपनों से जब भी लड़ा हूँ, जीता हूँ
मैं जीत के बोझ की थकान जैसे।
बचपन में सारे दोस्त जहाँ खेलते थे
मैं
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