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तुम बिल्कुल वैदेही जैसी,
पर मैं राम नहीं बन पाया
अनमोल रत्न सा प्रेम तुम्हारा,
जिस का मैं दाम नहीं बन पाया
मौन धरे तुम नयनों में,
कई स्वप्न सजाती होंगी
बस, उनको साकार करूं,
वह परिणाम नहीं बन पाया
तेरी मे
पर मैं राम नहीं बन पाया
अनमोल रत्न सा प्रेम तुम्हारा,
जिस का मैं दाम नहीं बन पाया
मौन धरे तुम नयनों में,
कई स्वप्न सजाती होंगी
बस, उनको साकार करूं,
वह परिणाम नहीं बन पाया
तेरी मे
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