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कुछ वक़्त बिताना चाहती हूँ मैं तेरी यादों के साथ
आज फिर अपनी तन्हाई को बेइंतेहा करना चाहती हूँ
तेरी कुर्बतों में अक्सर मुस्कुराया करती थी इसलिए
आज इस हिज्र को अपने आँसुओं से डुबोना चाहती हूँ
नहीं आरजू करूँ कि कोई मेरी राहों में फूल बिछाये
मैं खुद ही अपने तमाम राहों को बेजार करना चाहती हूँ
उससे पूछना था मेरी याद आती भी हैं या नहीं तुम्हें
कहीं वो इंकार न कर दे इसलिए खामोश रहना चाहती हूँ
उसने परखने की कभी कोशिश ही नहीं की मुझको
मैं जिसके लिए 'आँचल' सोने की तरह निखरना चाहती हूँ
©आँचल त्रिपाठी
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