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कुछ वक़्त बिताना चाहती हूँ मैं तेरी यादों के साथ

आज फिर अपनी तन्हाई को बेइंतेहा करना चाहती हूँ


तेरी कुर्बतों में अक्सर मुस्कुराया करती थी इसलिए

आज इस हिज्र को अपने आँसुओं से डुबोना चाहती हूँ


नहीं आरजू करूँ कि कोई मेरी राहों में फूल बिछाये

मैं खुद

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