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बजाते थे साज और गुनगुनाते थे गीत हर महफ़िल में,
पर ज़ख़्मों से निकली आह का कोई तराना तो नहीं था।
दिल का दर्द छिपाकर लगाते थे नकली हँसी के ठहाके,
पर आँखों से बहते आँसूओं का कोई फ़साना तो नही था।
तुम
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