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शमशान और कब्रिस्तान सब हैं भरे हुए,
अपनी इस दुनिया को यूँ ना बेजान कर....
प्रगति और विज्ञान सब हो गए बेकार,
हमारे दुखों का अब तू ही निदान कर....
रोक दे अब इस कुदरत के कहर को,
अपने बन्दों पर इतना तो एहसान कर...
समुद्रमंथन के जैसे शिव बनकर विषपान कर,
अमृत की वर्षा करके सबको जीवनदान कर।
~ अम्बुज गर्ग
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