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जीवन भर ये शहर मुझे,
आता रहेगा याद,
कितनी जल्दी बीत गया,
ये सात वर्षों का साथ,
अपने में मस्त रहता था मैं,
गर्मी बरसात और जाड़ों में,
ना मिलता कभी कोई साथ में तो,
मैं अकेला ही घूम आता था पहाड़ों में,
पेशा ही कुछ ऐसा था मेरा,
हर गली मुझको पहचानती थी,
नाम से भले ना जानती हो मुझे,
पर सूरत से मुझको जानती थी,
जाने पहचाने कई चेहरे थे,
बहुत अच्छे थे लोग,
कुछ नज़र आते कभी-कभी,
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