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✍️अमर त्रिपाठी
मोहब्बत से नफरत होने लगी है धीरे-धीरे,
कल तक जिनकी यादों में जिया करते थे हम,
आज वही पराए होने लगे हैं धीरे-धीरे।
यह दुनिया की रीत बड़ी ही है अनोखी,
जिसको मोहब्बत किया वह मिला नहीं जो मिला उसे मोहब्बत कभी हुआ नहीं ,
हम भी अश्क को छुपाए जिए जा रहे हैं धीरे-धीरे।
दुनिया को फर्क होगा रीति-रिवाजों का,
मैं तो मैंखाने की तरफ बढ़े जा रहा हूं धीरे धीरे।
लोग करते होंगे इंतजार उजाले का, तो करते रहे इंतजार उजाले का,
हम तो बस शाम के इंतजार में पिये जा रहे हैं धीरे-धीरे।।
प्याला मुझे पी जाए या मैं प्याले को पी जाऊं,
कोई गम नहीं है अब मुझे,
क्योंकि मरना है सभी को इस दुनिया में,
अब समझ में आ रहा है मुझे धीरे-धीरे।
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