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याद आ रही है
उन गलियों की
जहां खेल कर मैं बड़ा हुआ
उन राहों की जो आज भी
मेरे मन मे बसते है
वो कच्चा मकान
जिसमे मेरा बचपन बिता
वो छोटी दुकान जिसमे ना जाने
कितनी उधारी रह गयी
वो माँ की थपकी
वो बड़े भाई की झप्पी
दीदी का पीटना
छोटे भाई का खीजना
चोरी के लड्डू खाना
पल भर मे रोना गाना
वो आँख मिचौली
वो चूरन की गोली
वो कूल्फी की मटकी
वो डाली पर पतंग लटकी
वो अठन्नी चौवन्नी
वो लट्टू और घिरनी
वो स्कूल के साथी
वो मेले
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