
तेरे उपकार का ये ऋण, भला कैसे चुकाऊंगा?
दबा हूँ बोझ में इतना, खड़ा अब हो ना पाऊँगा
मेरी पूंजी है ये जीवन, जो तुम चाहो तो बस ले लो
सिवा इसके तुम्हें अर्पण, मैं कुछ भी कर ना पाऊँगा
दिया था हाथ जब तुमने, मैं तब डूबता हीं था
सम्हाला था मुझे तुमने, के जब मैं टूटता हीं था
मैं भटका सा मुसाफिर था, राह तू ने था दिखलाया
गलत था मेरा हर रस्ता, सही तूने बताया था
मैं खुद से चल नहीं पाता, जो तेरा हाथ ना होता
बिखर जाता मैं यूं कबका, जो तेरा साथ ना होता
खड़ा हूँ आज पैरों पर, नहीं गुमान ये मेरा
मैं जो भी हूँ जैसा हूँ, सभी एहसान है तेरा
मैं नौसिखिया सिपाही था, पोथी तूने पढ़ाई थी
मेरे मन में सच्चाई की, ज्योत तूने जलायी थी
बड़ा आसान था मेरा, मकसद से भटक जाना
मगर वो सीख ना भुला, जो तूने सिखाई थी
कभी पीठ थप-थापा देना, कभी डपट दो चार रख देना
सभी के सामने फिर तेरा, मुझे दो चार कह देना
तपा हूँ तेरी भट्टी में तो, कुन्दन बनकर उभरा हूँ
मैं तेरा अक्स हीं तो हूँ, तुझी सा बनकर निखरा हूँ
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