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सोचा था इश्क़ का ये शुरुर न छोड़ेंग
फ़ना हो जाए फिर भी ये फितूर न छोड़ेंग
भीड मे तु हमे ना पहचाने तो ग़म नही
हम तुझे चाहते रहने का ये गुरुर ना छोडेंगे
किस संगदिल से हम दिल को लगाए बैठे है
वो खोये है खुदमें हम खुदको भुलाए बैठे है
राह जाती है गुजर कर दिल की नज़रों से कहीं
वो आँखे बंदकिये दिल को छुपाए बैठे है
ज़ुल्फ़ों से खेलती उन उंगलिओं के क्या कहने
वो दांतो से दुपट्टा
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