Share0 Bookmarks 219051 Reads1 Likes
सोचा था इश्क़ का ये शुरुर न छोड़ेंग
फ़ना हो जाए फिर भी ये फितूर न छोड़ेंग
भीड मे तु हमे ना पहचाने तो ग़म नही
हम तुझे चाहते रहने का ये गुरुर ना छोडेंगे
किस संगदिल से हम दिल को लगाए बैठे है
वो खोये है खुदमें हम खुदको भुलाए बैठे है
राह जाती है गुजर कर दिल की नज़रों से कहीं
वो आँखे बंदकिये दिल को छुपाए बैठे है
ज़ुल्फ़ों से खेलती उन उंगलिओं के क्या कहने
वो दांतो से दुपट्टा
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments