Share0 Bookmarks 53256 Reads0 Likes
थक गया हूँ झूठ खुद से और ना कह पाऊंगा
पत्थरों सा हो गया हूँ शैल ना बन पाऊंगा
देखते है सब यहाँ मुझे अजनबी अंदाज़ से
पास से गुजरते है तो लगते है नाराज़ से
बेसबर सा हो रहा हूँ जिस्म के लिबास में
बंद बैठा हूँ मैं कब से अक्स के लिहाफ में
काटता है खालीपन अब मन कही लगता नहीं
वक़्त इतना है पड़ा के वक़्त ही मिलता नहीं
रात भर मैं सोचता हूँ कल मुझे करना है क्या
है नहीं कुछ हाथ मेरे सोच कर डरना है क्या
टोक ना दे कोई मुझको मेरी इस बेकारी में
कुछ नहीं है
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments