ना दूःख है ना सुख है ना है कोई कामना
जीवन का सत्य से आज हो रहा है सामना
ना है कोई शिकवा ना है कोई रंजिश
बस सुकूं ही सुकूं है ना है कोई बंदिश
सब ये सोचते है ये मुश्किल डगर है
पर मैं ये जानता हूँ ये अंतिम सफर है
जो पहूंचा है यहाँ तक कभी हारा नहीं है
वापसी का यहाँ से कोई चारा नहीं
बचपन को अपने देखा जो मूडकर
बिसरी सी यादों से देखा है जूड़ कर
मुझे बेचैन करती है वो बचपन यादें
ठंडी के वो दिन और गर्मी की रातें
है सब छोड़े जाना यही पर सभी को
नहीं संग है जाना किसी के किसी को
जो रोते है हमको अपना बता कर
नहा कर के लौटेंगे हमको जलाकर
है मरने का ग़म नहीं मुझको लेकिन
काटेगी कैसे वो ना उम्मीदी के दिन
बच्चो के खातिर है अब उसको जीना
चाहे ग़म से कितना भी फटता हो सीना
ना रोएगी वो भी मुझे ये यकीं है
अब उम्मीद सारी उसी पर टिकी है
वही मर्द घर की जनाना वही है
दुनिया के तानों का निशाना वही है
मुझे ग़म है उसको युं छोड़ने का
आधे सफर में युं मूंह मोड़ने का
मगर क्या करूँ मैं की मुमकिन न
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments