झूठी सख्शियत's image
Share0 Bookmarks 207551 Reads0 Likes

राह में मैं एक दफा, खुद से हीं टकरा गया

अक्स देखा खुद का तो, होश मुझको आ गया

दूसरो को दूँ नसीहत , काबिलियत मुझमे नहीं

आँख औरों को दिखाऊं, हैसियत इतनी नहीं

 

आईने में खुद का चेहरा, रोज ही तकता हूँ मैं

मैं भला हूँ झूठ ये भी, खुदसे ही कहता हूँ मैं

अपने फैलाये भरम में, हर घडी रहता हूँ मैं

सोच की मीनारों पर, बस पूल बांधता हूँ मैं

 

बातों में मेरी सच की, दूर तक झलक नहीं

इस जमी मिलता जैसे, दूर तक फलक नहीं

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts