
वर्षों बीते घर को छोड़े
सबसे अपना रिश्ता तोड़े
जिस क्षण घर से निकला था मैं
माँ खड़ी थी द्वार को घेरे
पर मैं उस दिन रुका नहीं
अपने जिद से डिगा नहीं
जाने कैसी मनहूस घड़ी थी
खड़ा हुआ पर मुड़ा नहीं
सब कुछ पीछे छुट गया
दिल सभी का टूट गया
घर से पैर निकाला मैंने
भाग्य हीं मेरा फुट गया
माँ ने मुझको रोका था
भाई ने पहले हीं टोका था
पर मेरे आवारापन ने मुझे
घर जाने से रोक दिया
रिश्ते सारे बिखर गए
एक-एक कर सब फिसल गए
कभी जो अपने होते थे सब
इन वर्षों में बदल गएं
अक्सर मैं अपने सपनों में
पुराने घर में जाता हूँ
जिस दिन घर से निकला था,
सब वैसा हीं पाता हूँ
दोनों भाई बाँह पसारे
आलिंगन मेरा करते हैं
अब भी मुझको बचपन जैसा
प्यार बहुत हीं करते हैं
माँ वहीं पर बैठे बैठे
मंद-मंद मुस्काती है
देख कर अपने बच्चों का प्रेम
मन हीं मन खिल जाती है
अब भी मेरी छोटी साइकिल
बरामदे में खड़ी रही
और कहीं पर मेरी चप्पल
किसी कोने में पड़ी रही
पर मैं अपने बचपन को
बस सपनों में जीता हूँ
रहा ना कोई साथ हमारे
बस आँसू हीं पीता हूँ
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