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कब तक जले,
घर छोड़ कब तक चले,
तन जाती बंदूकों के सामने
आंखें फट जाती है
देख ये बर्बर जलजले
धीरे धीरे सबने काटा है
कहा कभी ऐसे किसी ने
दुख बांटा है
तीन दशकों से इंसाफ़ मांग रहे
हालात सुन सब भाग रहे
किसी ने है हिम्मत दिखाया
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