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जब चलऽ ली अपन घरवा से
दुसर शहरवा, की कमाएम
हमरा अपन गउवा याद आइल
सोचली फिर की
सांझिये के रोटियां कहां से लाएम।।
बाबू के दिहारी से
भूखवा ना मिटे हो
आ ना चलाएम देहवा ता
सेठवा करजावा ला पकड़ के पीटे हो।।
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