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तुम ख़िलाफ़ नहीं होते
सब चुपचाप है बस्ती में लेकिन मैं नहीं,
मैं तो अब भी बोलूंगा सारें राज खोलूंगा।
सब के सब बिक चुके हैं अपने रियासत में।
लग चुके हैं दाग धब्बें सबके ही विरासत में।
ये जो क्या कहते हैं,जो अपने को नेक बनते हैं,
मुझे तुम्हें देखकर इनके चेहरे अनेक बनते हैं।
नहीं निकल पा रहा गांव गली कहीं बाहर घर से,
वायरस तो दुसरी हुई अब देखो चुनाव के डर से।
सारे सफेद लिबास के अब साफ नहीं होते,
सच तो ऐ है डरते हो तुम ख़िलाफ़ नहीं होते।
-आलोक रंजन
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