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बादल बरस भी लिए
और बूंदे भिगो भी न पाई प्यासे अंतर्मन को
ये प्यास और ये प्यासापन
अब उस सावन के इंतजार में है।
ना जाने कितने सावन यूं ही गुज़ार दिए।
ना भिगोया तन को
ना मन
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बादल बरस भी लिए
और बूंदे भिगो भी न पाई प्यासे अंतर्मन को
ये प्यास और ये प्यासापन
अब उस सावन के इंतजार में है।
ना जाने कितने सावन यूं ही गुज़ार दिए।
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ना मन
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