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वो देख नहीं पायेंगें,

तुम्हारी आंखों में उभरते हुए नये स्वप्न

वो सहन नहीं कर पायेंगे

तुम्हारे नये शब्दों की चुभन ।

वो सहन नहीं कर पायेगें

तुम्हारे बदले हुए स्वर,

वो नहीं कर पायेंगे सहन

नये पथों पर चलते हुए तुम्हारे पांव

वो नहीं कर पायेंगे सहन

तुममें होता हुआ बदलाव ।

तुम्हारे अंदर सच झूठ में

अंतर कर पाने की विकसित दृष्टि

चुनना अपने पथ अपने आप

क्योंकि ये वो नहीं होगा,

जो वो देखना ,सुनना चाहते हैं।

या चाहते हैं,

जिन रास्तों पर तुम्हें चलते हुए देखना

या चाहते हैं,

तुम्हें जो बनता हुआ देखना।



2. चुभते हैं तुम्हारे स्वप्न

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