Share0 Bookmarks 59075 Reads0 Likes
रह गये अकथ अंधेरे सब ,
जो हुए प्रकट छद्म थे उजाले।
मुख का हास सबने देखा
देख सका कौन
मन है अंदर ही अंदर
कितनी व्यथाएं है पा
No posts
No posts
No posts
No posts
रह गये अकथ अंधेरे सब ,
जो हुए प्रकट छद्म थे उजाले।
मुख का हास सबने देखा
देख सका कौन
मन है अंदर ही अंदर
कितनी व्यथाएं है पा
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments