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एक बरस बाद भी
जरा न बदला
वो ही शहर,
वो ही गलियां, वही डगर है ,मगर
बदला मगर इतना सा
न अम्मा हैं, न बाबूजी हैं
इक बंद पड़ा
खामोश ,बेजान सा घर है।
हर इक कोने में बिखरी
न जाने कितनी यादें ,
उनकी कितनी बातें ,
आंखों से जाने क्यों टपका
अपने आप आंसू
जी आया भर।
नीरव 22.05.2022
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