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इनके नयन उनके नयन

aktanu899aktanu899 May 31, 2022
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इनके नयन उनके नयन,इनके मन उनके मन, लगी जाने कैसी लगन,

नयन-नयन से,मन -मन से,जाने क्या-क्या तो कह गये।


मौन अधरों में रुके रुके से गीत बिन गाए कितने रह गए

हृदय की पीर में,नयनों के नीर में,स्वप्न अधूरे जाने कितने बह गये।


जो मिले थे सर्वथा अपरिचित ही,अकस्मात इन पथों पर

नियति के होकर वशीभूत,परिचित सहयात्री होकर रह गये।


अंतर में पलतीं कितनी ही व्यथाएं,जैसे हों अनकही कथाएं

जब कह न पाए किसी से भी, चुपचाप ही सब सह गये।


ये पथ कितने अजाने थे,लोग भी कहां आरंभ में जाने पहचाने थे

मगर पथ के आकर्षण से कैसे बचते,रखे जो कदम तो चलते ही रह गये।



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