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कई बार,
चुपचाप विदा लेनी पड़ती है ,
वहां से भी ,
जो जगह बहुत प्रिय हो,
जहां से जाने का
जरा भी मन न हो,
पर शायद वहां और रहना
संभव ही नहीं रह जाता,
बस चले जाना ही
सबसे श्रेयस्कर होता है,
उन जगहों से ।
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