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तुम्हारी तीक्ष्ण दृष्टि में उभरे
कितने प्रश्नों के जब
कोई उत्तर न थे मेरे पास
सिवा एक अर्थहीन मौन के,
असहजता से बचने का
इससे सरल उपाय मुझे नहीं सूझा।
जब प्रश्नों के उत्तर न हों तो
मौन से श्रेयस्कर
हमें कुछ नहीं लगता है,
एक मौन से उत्तर मांग सका है कौन?
कई बार संबंधों में,
कितना कुछ जल जाता है चुप्पियों से,
तो कई बार
संबंध बचे रह जाते हैं चुप रहने से।
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