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उतारकर सब छद्म आवरण
मैं था सम्मुख तुम्हारे
पता नहीं देने की कुछ थी अभिलाषा
या याचक बन कर कुछ पाने को खड़ा था ।
अंतर्मन के सुनकर स्वर चुने पथ मैंने
किया जो करना था
कहा जो कहना था
कुछ प्रश्न किये,
कुछ उत्तर चाहे ,
कुछ उत्तर पाये
कुछ प्रश्न अब भी हैं अनुत्तरितपर प्रतीक्षारत उत्तर की अपेक्षा में।
2. तुम्हारे उत्तर पढ़े मैने,
हम अपना जीवन जीते हुए
सब बंधनों ,सब मर्यादाओं को निभाकर भी
इसी तरह करते रहेगें संवाद
मोन जिह्वां पर बोलते रहेंगे अक्षर।
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