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उतारकर सब छद्म आवरण
मैं था सम्मुख तुम्हारे
पता नहीं देने की कुछ थी अभिलाषा
या याचक बन कर कुछ पाने को खड़ा था ।
अंतर्मन के सुनकर स्वर चुने पथ मैंने
किया जो करना था
कहा जो कहना था
कुछ प्र
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