
आज धर्म के नाम पर जो नफ़रतें बढ़ती जा रही हैं, सभ्य और समरस समाज में शांति, सौहार्द व साम्य की सार्थकता को समझने व सोचने वाले सज्जनों, चाहे वो किसी भी धर्म के मानने वाले हों, की चिंता को बढ़ाने वाली है।
मैं हिन्दू हूँ और मेरे हिंदुत्व में किसी भी जीवमात्र के लिए घृणा, अपकार, अहित, उपहास व बदले की भावना नहीं है। मैं जितना अपने हिंदुत्व को मानता हूँ, उतना हीं अन्य धर्मों को मानने वाले सज्जनों को मानता हूँ। क्योंकि हरेक धर्म अपने मे आस्था रखने वाले जनों में शांति, त्याग, अहिंसा और प्रेम का हितोपदेश देता है। आज जरूरत है सभी धर्मों को गहराई से समझने की।
इस्लाम अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ ‘शांति में प्रवेश करना’ होता है। अतः मुस्लिम वह व्यक्ति है, जो ’“परमात्मा और मनुष्य के साथ पूर्ण शांति का सम्बंध” रखता हो। अतएव, इस्लाम शब्द का लाक्षणिक अर्थ होगा–वह धर्म जिसके द्वारा मनुष्य भगवान की शरण लेता है तथा मनुष्यों के प्रति अहिंसा एवं प्रेम का बर्ताव करता है।
हजरत मुहम्मद साहब इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हुए। मुहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म सोचकर नहीं निकला, इस धर्म का उन्हें इलहाम ( समाधि अथवा प्रेरणा की अवस्था मे दर्शन ) हुआ था। भगवत्प्रेरण से मुहम्मद साहब ने कुरान के आयतों का सृजन २३ वर्षों में किया जिसे अबूबक्र ( पहले खलीफा ) ने सम्पादन कर कुरान की पोथी तैयार की।
मुहम्मद साहब को जब धर्म का इलहाम हुआ, तबसे लोग उन्हें पैगम्बर, नबी और रसूल कहने लगे।
मुहम्मद साहब ने हर मुसलमान के लिए पाँच धार्मिक कृत्य निर्धारित किये ;
१. कलमा पढ़ना (एकेश्वरवाद)
२. नमाज पढ़ना (सलात)
३. रोजा रखना
४. जकात (आय का २.५% दान करना)
५. हज (तीर्थ में जाना)
गाँव मे (बचपन मे) मेरे दरवाजे पर हर साल तजिया का आयोजन होता था, अब नहीं, क्योंकि अब वे लोग नहीं रहे, तजिया अब फॉर्मेलिटी हो गई। मैं खुद हर साल दरगाह पर चादर चढ़ाता हूँ। मेरे अनगिनत मित्र हैं, जो इस्लाम धर्म को मानने वाले हैं, मेरी उनसे बहुत अच्छे सम्बन्ध और सरोकार हैं।
मेरे मित्र कहते हैं कि कुरान का फातिहा नामक अध्याय गीता के दूसरे अध्याय के समान है, यह कर्मफल के विवेचना का अध्याय है। कुरान भी मनुष्य-जीवन का लक्ष्य लका उल्लाह अर्थात ईश्वर-मिलन कोमानता है। मैं हजरत मुहम्मद साहब के नाती हजरत इमाम हुसैन की कर्बला में तत्कालीन खलीफा द्वारा निर्मम हत्या की कहानी जब भी सुनता और पढ़ता हूँ, काफी विह्वल हो उठता हूँ।
कर्बला को बलिदान और शहादत का प्रतीक माना जाता है। मौलाना मोहम्मद अली का इस घटना पर एक चुभता हुआ शेर है :–
कत्ले-हुसैन अस्ल में मर्ग़े-यजीद है।
इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद।
ऐसी त्याग व बलिदान से भरी पड़ी है इस्लाम की धरोहर।
आज जो लोग इस्लाम के नाम पर हिंसा, कट्टरता और विद्वेष को बढ़ावा दे रहे हैं, या अतीत में देते आये हैं, वे सच्चे मायनों में इस्लाम के माननेवाले हीं नहीं थे।
इस्लाम धर्म को मानने वाले भी कुछ ऐसे विभूतियों ने इस धरा पर जन्म लिया ( जैसे - अमीर खुसरो, रहीम इत्यादि ) जिन्होंने परस्पर भाईचारे, सौहार्द, शांति, अहिंसा को समाज मे स्थापित किया।
ऐसी एक घटना है हमारे बाबा तुलसी की और रहीम की ;
एकबार बाबा तुलसी और रहीम चित्रकूट में पंचवटी की परिक्रमा कर रहे थे, सामने से एक मतवाला हाथी रास्ते के धूल को अपने सूंड से उठाकर अपने मस्तक (शरीर) पर डाले आ रहा था। इस विष्मयबोधक क्षण को देख बाबा तुलसी असहज हो गए और रहीम से पूछे कि ये हाथी धूल को अपने मस्तक पर क्यूँ डाल रहा है.?
इसपर रहीम ने कहा - ये हाथी प्रभु श्रीराम के चरण-रज को ढूंढ रहा है जिस रज से (गौतम) मुनि पत्नी अहिल्या का उद्धार हुआ था।
सोचिए, एकदूसरे के धर्म के प्रति कितनी श्रद्धा थी, कितनी स्वीकार्यता थी, कितना सरोकार था, कितनी गरिमा थी, कितना आदर था…
आज सभी धर्म के मानने वालों ऐसी ही समझ की आवश्यकता है।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments