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खूँ से लथपथ ये जमाना हो गया
वक़्त कैसा ये बेगाना हो गया
साथ मिलके मुल्क़ में अपने रहे
क्यों तेरा क़ौमी तराना हो गया
बे-वजह ही दर्द क्यों देते हो अब
दर्द का दिल में ठिकाना हो गया
ए ख़ुदा महफूज़ रख ले यार को
क्यों हवा का वो निशाना हो गया
हाथ में शमशीर ले के क्यों चले
क्या ये दुश्मन यूँ जमाना हो गया
स्याह काली रात पे थे तुम दिखे
बंद दरवाजे पे जाना हो गया
क्यों उलझ कर रह गया आकिब' यहाँ
हर तज़ुर्बा अब पुराना हो गया
-आकिब जावेद
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