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अनसुलझा हुआ सा हूँ

थोड़ा सुलझा दो मुझे भी

कंही खोया हुआ सा हूँ

खुद से मिला दो मुझे भी

..

नही मिला पाओगे मुझे

मुझमे ही डूब जाओगे

हा पता है मुझे....

वो साथ मेरे यूँ चलना तेरा

हाथों में हाथ मेरे रखना तेरा

वो मेरे आंसुओं पे हंसना तेरा

भूल गई हो तुम सब

लेकिन पता है मुझे।

घने कोहरे में मचलना तेरा

बारिश पे भींग जाना तेरा

वो आँखों में आँख डालना तेरा

खो गयी हो तुम कँही

हा पता है मुझे...

अनसुलझा ही सही 

सुलझा दो मुझे

हकीकत में ना सही

ख्वाबो में फिर..

वैसे खुद से मिलवा दो मुझे..

नही कर पाओगी तुम...

हा पता है मुझे...

✍️आकिब जावेद

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