
Share0 Bookmarks 0 Reads1 Likes

पिंजरबद्ध प्राणी चीख रहा
हमें भी निर्गत, उद्गत होने दो
इन दास्ताओं में मत बाँधो
इनसे तुम्हें क्या मिलता है ?
कैद पिंजरे मे रहने से हमें
ऐसा प्रतीत होता सतत ही
जैसे मुझमें न कोई प्राण
सिर्फ कंकाल ही बचा हैं
हमें भी खुली आसंमा में
स्वतंत्रता की सांस लेने दो
मत करो कैद मुझे …..
मुझे भी बंधन मुक्त रहने दो।
ऐसा कई बार हुआ हमारे
इन मित्रों, बंधुओं के संग
बरसों पार्श्व जब इनकों
इन बंधनों से किया मुक्त
उस वक्त तक वो उड़ान
भरना भी भूल चूके थे
मत करो कैद हमें ……
मत बाँधो जंजीरो में
जीते जी मर जाते हम
कैद सी इन दीवारों में
घुट- घुट के मरते रहते…
हमें भी जीने का स्वत्व दो ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments