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जग हारा अंतक जीत गया आमोद मोद मधुगीत गया,
थे तन्हा तन्हा रात दिन वक्त शोकाकुल व्यतीत गया।
कुछ राष्ट्र बड़े जो बनते थे दीनों पर तनकर रहते थे ,
उनकी मर्यादा अनुशासित वो अहमभाव अपनीत गया।
खाली खाली सारी सड़कें थी सुनीं सुनी सब गलियां,
जीवन की वीणा बजती ना वो राग मधुर संगीत गया।
गत साल भरा था काँटों से मन शंकित शंकित रहता था,
शोक संदेशे सुन सुन कर उर का सारा वो गीत गया।
मदमाता सावन आया कब कब कोयल कूक सुनाती थी,
विस्मृत बाग में फूलों के हिलने डुलने का रीत गया।
निजनिलयों में रहकर जीना था डर
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